स्कूलों के लिए शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व – भाग- 1

(Educational – Academic Leadership for School Governance)

Leader या leadership जिसे हिंदी में नेतृत्वकर्ता या नेतृत्व के नाम से हम जानते हैं। इसी तरह educational leader या Academic leader जिसे हिंदी में शैक्षिक नेतृत्वकर्ता या अकादमिक नेतृत्वकर्ता कहते हैं। इन सभी शब्दों से, नामों से हम सब भलीभांति परिचित हैं। तब यह सवाल उठता है कि जब हम सब इनसे भलीभांति परिचित हैं तो इस लेख में इस पर क्यों चर्चा करना चाहते हैं?
इसके लिए हमें अपने आप से कुछ सवाल करना होगा। जैसे-

  • क्या हमारे स्कूलों में बच्चे हमारी आशा के अनुरूप या यों कहना चाहिए कि वे अपने स्तर या आयु के अनुरूप सीख रहे हैं?
  • क्या स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति नियमित रहती है?
  • क्या हमारे शिक्षक सभी बच्चों को सीखने का समान अवसर देने में सक्षम हैं?
  • क्या हमारे शिक्षक स्वयं पाठक, शोधकर्ता एवं प्रयोगधर्मी हैं?
  • क्या हमारे शिक्षकों को नियमित अकादमिक मार्गदर्शन मिल पाता है?
  • क्या स्कूलों को मिलने वाली शैक्षिक नेतृत्व पर्याप्त व सही दिशा में है?

उपरोक्त सवालों से ये कतई आशय नहीं है कि हमारे शिक्षकों की मेहनत में कोई कमी है। कोरोना काल में तो शिक्षकों ने साबित कर दिया है कि उन्हें सही मार्गदर्शन और नेतृत्व मिले तो वे हर परिस्थिति में बच्चों को सीखा सकते हैं। हालाँकि कोरोना काल के दौरान बच्चों के सीखने पर हुए शोध हमें बताते हैं कि बच्चों का पढ़ाई में काफी नुकसान हुआ है।
इन सबके बावजूद शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व को समझने के लिए हमें ऊपर के सवालों पर गौर करना होगा और इसके लिए भारत सरकार द्वारा समय-समय पर किए ‘राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण’ से प्राप्त परिणामों पर भी चिंतन करना होगा। यहां हम राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2017 (छत्तीसगढ़) से प्राप्त कुछ परिणामों पर दृष्टिपात करते हैं। जो इस प्रकार हैं-

  • कक्षा 3 में विषयवार सही प्रतिक्रियाएँ औसतन इस प्रकार थे
    • भाषा में 65 प्रतिशत
    • गणित में 60 प्रतिशत तथा
    • पर्यावरण अध्ययन में 62 प्रतिशत
  • कक्षा 5 में विषयवार सही प्रतिक्रियाएँ औसतन इस प्रकार थे
    • भाषा में 55 प्रतिशत
    • गणित में 47 प्रतिशत
    • पर्यावरण अध्ययन में 53 प्रतिशत
  • कक्षा 8 में विषयवार सही प्रतिक्रियाएँ औसतन इस प्रकार थे
    • भाषा में 56 प्रतिशत
    • गणित में 36 प्रतिशत
    • विज्ञान में 44 प्रतिशत तथा
    • सामाजिक विज्ञान में 45 प्रतिशत

उपरोक्त परिणाम हमें यह बताते हैं कि बच्चे स्कूलों में आशा के अनुरूप नहीं सीख पा रहे हैं जबकि संकुल (लगभग 10-12 स्कूलों का समूह) से राज्य स्तर पर एक व्यवस्था कार्य कर रही है। संकुल स्तर पर संकुल समन्वयक पदस्थ होते हैं जिनका मुख्य दायित्व अपने संकुल के सभी शालाओं के शिक्षकों को शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व मार्गदर्शन देना होता है। इसी तरह विकासखंड स्तर पर विकासखंड स्रोत समन्वयक होते हैं जबकि जिले स्तर पर जिला शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थान जिसे डाईट (DIET) के नाम से पूरे देश में जाना जाता है। डाईट जिले स्तर की शैक्षणिक संस्थान होते हैं जो राज्य स्तर की शैक्षणिक संस्थान राज्य शैक्षिक एवं अनुसंधान परिषद (SCERT) के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में कार्य करती है।

शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व

बच्चों के कमजोर उपलब्धि स्तर के कुछ संभावित कारणों को हमें देखना चाहिए। जैसे-

  • शालाओं में बच्चों के सीखने के वास्तविक अवधि का पर्याप्त न होना।
  • बच्चों के मान से शिक्षकों / विषयवार शिक्षकों की अनुपलब्धता।
  • शिक्षकों का पेशेवर न होना।
  • संकुल स्तर पर शिक्षकों को अकादमिक सतत मार्गदर्शन उपलब्ध न होना।
  • संकुल समन्वयकों का अकादमिक कार्य के अलावा अन्य कार्यों में अधिक समय लगाना, जैसे आंकड़ों का संग्रहण कर उच्च कार्यालयों को उपलब्ध कराना आदि।
  • शाला, संकुल, जिले व राज्य स्तर पर अकादमिक योजना का विधिवत निर्माण एवं क्रियान्वयन में कमी।

बच्चों के उपरोक्त कमजोर उपलब्धियों के सुधार की दिशा में बहुत सी चुनौतियाँ हैं। जैसे –

  • स्कूल एवं संकुल स्तर पर-
  • शिक्षकों को स्कूल एवं संकुल स्तर पर निरंतर, प्रत्यक्ष एवं सही अकादमिक मार्गदर्शन उपलब्ध कराना।
  • वर्ष भर में वास्तविक शिक्षण अवधि को बढ़ाना।
  • बच्चों की नियमित उपस्थिति।
  • सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सीखने के प्रतिफल, शिक्षण शास्त्र तथा आकलन में सामंजस्य (alignment)।
  • समावेशन के संदर्भ में शिक्षकों एवं संकुल समन्वयकों का क्षमता वर्धन।
  • संकुल स्तर पर बच्चों के सीखने के स्तर का विश्लेषण, शोध एवं नवाचार के लिए शिक्षकों, प्रधान अध्यापकों एवं संकुल समन्वयकों की स्वायत्तता सुनिश्चित करना।
  • लघु एवं दीर्घ अवधि के लिए अकादमिक योजना, कैलेंडर सुनिश्चित करने के लिए संकुलों को स्वायत्तता देना।
  • प्रधान अध्यापकों एवं संकुल समन्वयकों के लिए स्कूल प्रशासन एवं नेतृत्व में लघु अवधि का पाठ्यक्रम पूरा करने की व्यवस्था एवं अनिवार्यता सुनिश्चित करना।
  • शिक्षकों का गैर शिक्षकीय कार्य में समय देना।
  • भाषा की समस्या।
  • लगातार बदलते हुए उच्च स्तर से प्राप्त शैक्षणिक निर्देश का अनुपालन।
  • शिक्षकों में आपसी सामंजस्य / समन्वय बढ़ाना।
  • शिक्षकों एवं प्रधान अध्यापकों का स्कूल प्रशासन एवं शैक्षिक नेतृत्व में नियमित क्षमतावर्धन करना।
  • विकासखंड, जिला एवं राज्य स्तर पर चुनौतियाँ-
    • प्रत्येक विद्यालय नेतृत्व को राज्य द्वारा निर्धारित शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उन्हें स्वायत्तता दिए जाने की आवश्यकता होगी ताकि वह स्थानीय परिवेश के अनुसार स्वयं निर्णय लेकर शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
    • कक्षा के संदर्भ में शिक्षकों की कमी विशेषकर संकुल स्तर पर विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति।
    • स्कूल प्रशासन एवं नेतृत्व पर विशेषकर शैक्षिक नेतृत्व में विभिन्न स्तर के अधिकारियों का लघु अवधि के अनिवार्य प्रमाणन सुनिश्चित करना।
    • शिक्षा के उद्देश्य और उच्च स्तरीय अनुवीक्षण में सामंजस्य (alignment) बिठाना।
    • शैक्षिक सहायक सामग्री की पर्याप्त मात्रा में समय पर पूर्ति सुनिश्चित करना।
    • जिले स्तर पर कार्यरत जिला एवं प्रशिक्षण संस्थानों में स्कूल प्रशासन एवं नेतृत्व विशेषज्ञ उपलब्ध कराना।
    • राज्य स्तर पर संचालन, नियमन एवं प्रमाणन से जुड़ी अलग-अलग संस्थानों का आपसी समन्वय एवं दायित्व विभाजन।
    • शैक्षिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी वरिष्ठता के बजाय योग्यता के आधार पर सुनिश्चित करना

विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे कार्यों के बीच सामंजस्य (Alignments) स्थापित करना।  

उपरोक्त संदर्भ का गहन से विचार करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि पूरे शिक्षा विभाग के लिए शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व पर विशेष कार्य करने की आवश्यकता है। इन कार्यों में मुख्य रूप से कुछ विशेष क्षेत्रों में जैसे- शिक्षकों में अकादमिक रूप से पेशेवर विकास के साथ-साथ उन्हें एक नेतृत्वकर्ता के रूप में कौशल विकास करना, संकुल समन्वयकों को अकादमिक नेतृत्वकर्ता के रूप में तैयार करना, विकासखंड स्तर पर पदस्थ विकासखंड स्रोत समन्वयकों को अकादमिक मार्गदर्शक के रूप में तैयार करना, जिले स्तर पर डाईट प्रमुख को शैक्षिक नेतृत्वकर्ता के रूप में देखना, आदि। अतः स्कूल से जुड़े सभी हितधारकों में प्रशासनिक नेतृत्वकर्ता के कौशलों के साथ अनिवार्य रूप से शैक्षिक नेतृत्वकर्ता के रूप में ज्ञान-कौशलों का विकास करना होगा।

आगे भाग – 2 में हम देखेंगे कि शिक्षकों, संकुल समन्वयकों, विकासखंड स्रोत समन्वयकों तथा अन्य हितधारकों को शैक्षिक-अकादमिक नेतृत्व को विकसित करने के लिए उनमें कौन-कौन से ज्ञान एवं कौशलों का विकास करना बच्चों के सीखने के लिए लाभदायक हो सकता है। क्रमशः…

 

 

 

By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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