कक्षा शिक्षणकक्षा शिक्षण : उद्देश्य-तैयारी

कक्षा शिक्षण : उद्देश्य-तैयारी  

 

परिचय

एक सम्पूर्ण शिक्षण चक्र (कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी) को ध्यान से देखा जाए तो इसके तीन हिस्से नज़र आते हैं. पहले हिस्से को शिक्षण कार्य से  पूर्व की तैयारी, दूसरे हिस्से को शिक्षण कार्य (प्रक्रिया) तथा तीसरे हिस्से को ‘चिंतनशील सोच’ के रूप में देखना. (यहाँ आकलन को शिक्षण प्रक्रिया के  हिस्से  के रूप में देखा गया है) कक्षा शिक्षण में इसका उद्देश्य और तैयारी के चक्र को सम्झना होगा। 

कक्षा शिक्षण में कार्य  की पूर्व तैयारी को सामान्य ढंग से देखने से तो सिर्फ यह दिखाई पड़ता है कि विषयगत पाठ जिसको पढ़ाना है, को एक बार ध्यान से पढ़ लिया जाए. यदि हम शिक्षण को एक कौशल के रूप में देखें तो कक्षा शिक्षण के उद्देश्य और तैयारी महत्वपूर्ण हो जाता है. यहाँ अभ्यास से आशय हैं शिक्षण कार्य को करते हुए उसमें निखार लाना. ऐसा संभव नहीं है कि पहले इसका अभ्यास कर लिया जाए फिर बाद में शिक्षण कार्य को प्रारम्भ करें. जिस तरह तैरना सीखने के लिए तैरना अनिवार्य शर्त है उसी तरह शिक्षण में पारंगत होने की अनिवार्य शर्त है शिक्षण कार्य में स्वयं को लिप्त करना और ऐसा करके ही शिक्षण कार्य में पारंगतता हासिल किया जा सकता है. कक्षा शिक्षण की तैयारी तीन तरह के प्रश्न पूछते हुये की जा सकती है-

·        शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं? जो मूलतः इससे निर्धारित होते हैं कि किस प्रकार का समाज हमें चाहिए?

·        जिस विषय का शिक्षण कार्य किया जाना है उस विषय को पढ़ाने के क्या उद्देश्य हैं? उस विषय के माध्यम से बच्चों में किन कौशलों व क्षमताओं का विकास किया जाना है? (इसे सहूलियत के लिए ‘विषयगत उद्देश्य’ कह सकते हैं)

·        विषयगत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किस विषयवस्तु को माध्यम बनाया गया है? किस विषयवस्तु पर समझ बनाने की कोशिश की गयी है? (इसे सहूलियत के लिए पाठगत उद्देश्य कह सकते हैं)

कक्षा शिक्षण
कक्षा शिक्षण : उद्देश्य-तैयारी

कक्षा शिक्षण की पूर्व तैयारी

सबसे पहले शिक्षा के उद्देश्यों को शिक्षण कार्य के पूर्व तैयारी के रूप देखते हैं. इसके लिए स्कूल और समाज के मध्य सम्बन्ध तथा शिक्षा के संवैधानिक मूल्यों पर विचार करना महत्वपूर्ण हो सकता है. हम किस प्रकार का समाज स्थापित / विकसित करना चाहते हैं. इस प्रकार के शैक्षिक लक्ष्यों में जिस पर लगातार लम्बे समय तक कार्य करने के बाद ही कह सकते हैं कि हम उस शैक्षिक लक्ष्य तक पहुँच पाए या नहीं. उदाहरण के लिए यदि हमारा शैक्षिक लक्ष्य ‘न्याय पर आधारित समाज की स्थापना’ करना है तो हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि न्याय से हमारा आशय क्या है. क्या जाति, धर्म, लिंग में भेद किए बिना सबके अधिकारों की रक्षा करना न्याय है? क्या ऐसे समाज को देखना जहां शान्ति डर एवं भय से नहीं बल्कि एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते हुए समाज में शान्ति स्थापित करना है? ऐसे कई तरीकों से हमें न्याय को परिभाषित करना होगा. उसके बाद हमें इस पर विचार करना होगा कि  जितनी देर कक्षा में बच्चों के साथ अंतर्क्रिया होगी उसमें  शिक्षक का व्यवहार कैसा होगा, उसे किन-किन बातों को ध्यान रखना होगा। ऐसे अन्य कई पहलुओं पर भी  विचार करना होगा. जैसे शिक्षक और बच्चों के मध्य या बच्चों और बच्चों के मध्य की अंतर्क्रिया में कहीं जाति, धर्म, लिंग आधारित भेदभाव पूर्ण व्यवहार (अनजाने में भी) तो नहीं हो रहा है. कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी के लिए ये सब जरूरी है। 

शिक्षा के सामान्य उद्देश्य

कक्षा शिक्षण में उद्देश्यों व तैयारी के मद्देनजर शिक्षकों को पाठ्यक्रम के सभी घटकों को ध्यान रखना होता है। जबकि वे किसी विषयवस्तु पर कार्य करते हुए शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों को अनजाने में ही सही,  भूल जाते हैं और उन्हें कक्षा में स्थान नहीं दे पाते. जैसे जब कोई शिक्षक ‘नक्शा पढ़ना’ सिखा रहा होता है तो पूरा ध्यान नक़्शे का ‘पठन कौशल’ को विकसित करना मुख्य उद्देश्य हो जाता है जबकि शिक्षण के हर क्षण हमें शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों (जिसके लिए शिक्षा तंत्र विकसित हुआ है) को जो लम्बे समय अंतराल के बाद पूरा होना होता है, को भी अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए. उदाहरण के लिए यहाँ यह देखा जाना महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या बच्चे नक़्शे का ‘पठन कौशल’ का उपयोग एक-दूसरे से सहयोगात्मक  ढंग से सीखने में कर रहे हैं या नहीं. यही ‘सहयोग की भावना’ वयस्क समाज को वांछित समाज की और ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है. इस प्रकार शिक्षण की पहली तैयारी में शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कैसे कार्य किया जाना होगा पर गंभीरता पूर्वक विचार कर लेना चाहिए.

कक्षा शिक्षण के विषयगत उद्देश्य

अभी  हमने शिक्षण की तैयारी के लिए उठाए गए तीन प्रश्नों में से पहला प्रश्न ‘शिक्षा के क्या उद्देश्य है’ पर कुछ उदाहरणों के साथ विचार करने का प्रयास किया है. अब हम इसके दूसरे प्रश्न ‘जिस विषय का शिक्षण कार्य किया जाना है उसकी प्रकृति क्या है तथा उस विषय को पढ़ाने के क्या उद्देश्य हैं? इस विषय के माध्यम से बच्चों में किन कौशलों व क्षमताओं का विकास किया जाना है? जिसे हमने सहूलियत के लिए विषयगत उद्देश्य का नाम दिया है, पर विचार करते हैं कि आखिर विषयगत उद्देश्य के तहत शिक्षण की क्या तैयारी की जा सकती है.

जैसे- गणित पढ़ाने का उद्देश्य हो सकता है बच्चों में तार्किक क्षमता का विकास करना, अपने दैनिक जीवन की समस्याओं को गणितीय ढंग से सुलझा पाना आदि. भाषा पढ़ाने का उद्देश्य हो सकता है कि बच्चे स्वतंत्र रूप से विचार कर सकें, अपनी बातों को निर्भीकता से दूसरों के समक्ष रख सके आदि. इसी तरह सामाजिक विज्ञान को पढ़ाने का उद्देश्य हो सकता है कि बच्चे समाज में घट रही विभिन्न घटनाओं के मध्य संबंधों को देख सके.

विज्ञान विषय का उद्देश्य 

विज्ञान का उद्देश्य हो सकता है कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच पैदा हो. इन्हीं सब उद्देश्यों के आधार पर कक्षागत अभ्यास का नियोजन करना शिक्षण का महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है, जिसके आधार पर कक्षा में की जाने वाली गतिविधियों को दिशा प्रदान की जा सकती है, सहायक शिक्षण सामग्री का विवेक सम्मत उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है.

सामाजिक विज्ञान

इसमे इतिहास, राजनीतिशास्त्र एवं भूगोल जैसे विषयों को समाहित किया जाता है.

आगे अपनी बात को बढ़ाने के लिए भूगोल विषय के अनेक उद्देश्यों में से एक बृहद उद्देश्य ‘विभिन्न घटनाओं के मध्य आपसी संबंधों को समझना’ को एक उदाहरण के रूप में ले सकते हैं- जैसे किसी स्थान की धरातलीय संरचना का वहाँ होने वाली वर्षा की मात्रा के साथ क्या सम्बन्ध होते हैं तथा वर्षा का वहाँ होने वाली फसलों के साथ क्या सम्बन्ध होंगे अर्थात वहाँ किस तरह की फसलें उगाई जाती है? आदि.

कक्षा शिक्षण के उद्देश्यों व तैयारी में कुछ कौशलों का विकास

इसी तरह कक्षा शिक्षण के उद्देश्यों व तैयारी में कुछ कौशलों का विकास करना भी इस विषय का एक महत्वपूर्ण विषयगत उद्देश्य है. उदाहरण के लिए ‘नक्शा पठन’ का कौशल. यदि हमारा भूगोल पढ़ाने का ‘विषयगत’ उद्देश्य बच्चों में नक़्शे का पठन कौशल विकसित करना है तो हमारी कक्षा संचालन की तैयारी में विभिन्न देशों (स्तरानुसार) के नक़्शे को मुख्य शिक्षण सामग्री के रूप में चयन करना होगा. यह देखना होगा कि बच्चों के लिए लिखी गयी पाठ्य पुस्तकों में मुद्रित नक़्शे का उपयोग किस तरह से हो. नक़्शे पढ़ने के सभी आवश्यक घटकों (दिशा, पैमाने, संकेत चिन्ह, रंग आदि) पर बच्चों में समझ विकसित करने संबंधी गतिविधियों का नियोजन करना होगा. यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस पठन कौशल को विकसित करने के लिए बच्चों को व्यक्तिगत कार्य करने का अवसर, जोड़ी में कार्य करने का अवसर एवं समूह में कार्य करने का अवसर कहाँ-कहाँ व किस तरह देना होगा / दिया जा सकता है. इस प्रकार विषयगत उद्देश्य यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है कि कक्षा संचालन की तैयारी किस तरह की जानी चाहिए.

कक्षा शिक्षण के पाठगत उद्देश्य – विषयवस्तु

अब हम शिक्षण की तैयारी के लिए उठाए गए तीन प्रश्नों में से तीसरा एवं अंतिम प्रश्न ‘विषयगत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किस विषयवस्तु को माध्यम बनाया गया है? किस विषयवस्तु पर समझ बनाने की कोशिश की गयी है?’ पर विचार करते हैं. जैसा कि प्रश्न में ही कहा गया है कि विषयगत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किस ‘विषयवस्तु’ को माध्यम बनाया गया है? यहाँ हम भूगोल विषय में ‘अफ्रीका महाद्वीप’ को पाठगत विषयवस्तु (माध्यम) के रूप लेते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं. इस विषयवस्तु में निश्चित ही विषयगत उद्देश्य ‘नक़्शे का पठन कौशल’ तो है ही पर साथ में यह समझ भी विकसित करना अवश्यम्भावी हो जाता है कि बच्चे अफ्रीका महाद्वीप की भौतिक संरचना को इस आशय के साथ समझे कि यह वहाँ के जलवायु, वर्षा, जनजीवन आदि को किस तरह प्रभावित करता है. इस तरह ये सभी इसके पाठगत उद्देश्य कहे जायेंगे. अतः इन पाठगत उद्देश्यों को ध्यान में रखकर कक्षा की गतिविधियों को दिशा देना होगा. जैसे बच्चों को यह अवसर देना कि सभी बच्चे व्यक्तिगत कार्य के रूप में नक़्शे का पठन कौशल का उपयोग करते हुए अफ्रीका महाद्वीप के भौतिक भागों का वर्णन करें, इसे जोड़ी में या छोटे-छोटे समूहों में कार्य कराने की लिए भी गतिविधियों का नियोजन की जा सकती है. यहाँ शिक्षक की स्वायत्तता है कि विषयवस्तु पर कार्य करने की तैयारी किस प्रकार करता है.

शिक्षण प्रक्रिया

इस लेख के प्रारम्भ में ही हमने ‘शिक्षण चक्र’ शब्द का उपयोग किया है और इस चक्र के पहले हिस्से के रूप में ‘शिक्षण कार्य के पूर्व तैयारी, पर काफी बातचीत कर चुके हैं. अब हम इस चक्र के दूसरे हिस्से ‘शिक्षण कार्य (प्रक्रिया)’ पर बात करते हैं, अर्थात अब हम उपरोक्त तैयारी के बाद कक्षा में शिक्षण कार्य के लिए प्रवेश करते हैं. जब हम कक्षा में प्रवेश करते हैं तो हमें सबसे पहले जिस पर विचार करना श्रेयस्कर हो सकता है वह है – ‘कक्षा का वातावरण’। 

सीखने का वातावरण 

यह सर्वमान्य है कि बच्चों का अच्छा सीखना एक कक्षा के अच्छे वातावरण में संभव होता है. यहाँ अच्छा वातावरण से आशय एक ऐसे स्थल से है जहां बच्चों का देखभाल होता हो वह भी लिंग-जाति-धर्म-सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर भेदभाव किए बिना. एक ऐसा स्थल जहां शिक्षक और बच्चों के मध्य तथा बच्चों-बच्चों के मध्य अंतर्क्रिया करने का पूरा अवसर उपलब्ध होता हो. जहां बच्चे यह उम्मीद करते हों कि शिक्षक उन्हें सीखने के सभी गतिविधियों में शामिल करेंगे. जहां बच्चों के अनुभव एवं पूर्व ज्ञान का सम्मान किया जाता हो. जहां बच्चे बिना डर-भय के अपनी बात कक्षा में रख सकते हों. जहां बच्चों द्वारा त्रुटियों को सीखने की सीढ़ी के रूप में देखा जाता हो. जहां बच्चे एक दूसरे के सहयोग को सीखने की प्रक्रिया में शामिल करते हों.

कक्षा का संचालन

अब बारी आती है शिक्षक के द्वारा अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार कक्षा के  संचालन की. कक्षा संचालन के दौरान की जाने वाली अनेक गतिविधियों को मुख्य रूप से दो भागों में रखा जा सकता है. एक वे गतिविधियां जिन्हें सीधे शैक्षिक प्रक्रिया के रूप में देख सकते हैं और एक वे जिन्हें कक्षा में आवश्यक परिस्थितियाँ  उत्पन्न करने के लिए काम में लाते हैं.

बच्चों को गतिविधियों के अनुरूप बिठाना, पुस्तक खोलने के लिए कहना, शार्पनर से पेन्सिल में धार करने के लिए कहना, बच्चों से चाक मंगवाना आदि ऐसे  कुछ काम  हैं जिन्हें हम शिक्षण की विशिष्ट गतिविधियाँ नहीं कह सकते बल्कि बच्चों द्वारा आपस में किसी मुद्दे पर चर्चा करने, खोज करने, शिक्षक के द्वारा किसी विषय पर व्याख्यान देने जैसी  गतिविधियों को विशिष्ट शैक्षिक गतिविधियों के रूप में देखा जा सकता है.

कक्षा संचालन की इन गतिविधियों में पढ़ाये जाने वाले विषय के लिए बच्चों के पूर्व ज्ञान को टटोलना, उन्हें उनके पूर्व ज्ञान को व्यक्त करने का अवसर देना भी  महत्वपूर्ण  है. कक्षा संचालन के दौरान शिक्षण सहायक सामग्री के उपयोग के बारे में बहुत सी भ्रांतियां शिक्षकों में अभी भी मौजूद है. जैसे भूगोल में ग्लोब की समझ पर आधारित पाठ में पूरी  कक्षा के लिए सिर्फ ‘एक’ ग्लोब का उपयोग करते हुए शिक्षक ये मान लेता है कि पूरी कक्षा में एक ग्लोब के उपयोग द्वारा अपेक्षित विषयवस्तु की समझ विकसित हो गयी. जबकि केवल उन्हीं बच्चों में थोड़ी बहुत समझ विकसित होती है जिन्हें ग्लोब को छूकर-पास से देखकर समझने का अवसर मिलता है.

छोटे-छोटे समूहों में बच्चे ग्लोब लेकर कार्य करें ऐसे  अवसर देने के लिए एक कक्षा में एक से ज्यादा ग्लोब की आवश्यकता होगी. इस प्रकार बच्चों में सीखने का अवसर को लेकर भेदभाव अनजाने में ही शिक्षण के दौरान हो जाता है. यह सत्य है कि कक्षा में बच्चों को सीखने का अवसर कितना मिलता है यह इस पर निर्भर करता है कि उन्हें पाठ्यक्रम / पाठ्यचर्या द्वारा निर्धारित विषयवस्तुओं की गतिविधियों में भाग लेने का कितना अवसर मिलता है. यहाँ सीखने के अवसर में ‘समता’ एवं ‘समानता’ जैसे शब्दों के असल मायने को शिक्षण के दौरान ध्यान में रखना होता है.

Co-operative Learning

कक्षा में शिक्षण के दौरान बच्चों के सीखने की प्रक्रिया और प्रकृति को भी ध्यान में रखना होता है. जब हम कहते हैं कि बच्चा स्वयं सीखता है, अपने साथी से अंतर्क्रिया करते हुए सीखता है, छोटे समूहों में सीखता है, तो सीखने की यह  प्रक्रिया कक्षा में हो पाये  इसके लिए  कक्षा में बच्चों को अवसर देना होगा. इस प्रकार का Co-operative Learning से हम प्रभावशाली शिक्षण के साथ सामाजिक अंतर्क्रिया को प्रोत्साहित कर सकते हैं. यह बच्चों की रूचि, विषयगत मूल्य एवं उनके सकारात्मक अभिवृत्ति को भी बढाता है.

चूंकि चर्चा करना Co-operative Learning का मुख्य हिस्सा होता है अतः इसमें संज्ञानात्मक एवं उनके सह-संज्ञानात्मक क्षमता को पोषित करने, उसे विकसित करने की पूरी गुंजाइश होती है. जबकि परम्परागत शिक्षण प्रक्रिया में पूरी कक्षा को किसी एक ही विषयवस्तु / पाठ में एक साथ एक ही स्तर का मानकर शिक्षण कराया जाता है, साथ ही जो task बच्चों को दिए जाते हैं उसे सभी बच्चे व्यक्तिगत रूप से करते हैं जिसे एक नियत समय में करते हैं. Co-operative Learning में भी पूरी कक्षा के साथ एक साथ ही काम होता है, लेकिन इसमें बच्चों का जोड़ी में काम करना, छोटे समूहों में भागीदारी करते हुए काम करना इसे विशिष्ट बना देता है. यह सीखने को सार्थक बनाता है जिसे सामाजिक मूल्यों जिनकी हमने शिक्षा के सामनी मूल्यों के अंतर्गत बात की के साथभी जोड़कर देखा जा सकता है.

Co-operative Learning और सहायक सामग्री 

कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी के अंतर्गत Co-operative Learning में विशेषकर छोटे समूहों में कार्य करने का अवसर देना कक्षा में उपलब्ध शिक्षण सहायक सामग्री पर भी निर्भर करता है. उदाहरण के लिए बच्चों में ग्लोब की समझ एवं पठन कौशल विकसित करने के लिए छोटे समूहों में ‘सीखने’ का अवसर देना है तो कक्षा में एक मात्र ग्लोब से काम नहीं चलेगा.   

शिक्षण रणनीति में सामान्य सीखना एवं पठन कौशल के अलावा अर्थ निर्माण, गणितीय समस्याओं को सुलझाना तथा वैज्ञानिक ढंग से तार्किक सोच के लिए शिक्षण करना शिक्षण का मुख्य भाग होना चाहिए. शिक्षण के दौरान सम्पूर्ण रणनीति में कुछ सवाल बच्चों के ज्ञान के सन्दर्भ में  किए जा सकते  हैं  कि कोई ज्ञान / जानकारी  को बच्चे कितना जानते है, कैसे जानते हैं, तथा इस समझ या जानकारी को कब, क्यों और किन परिस्थितियों में उपयोग कर सकते हैं. इस तरह की रणनीति से शिक्षण को पुख्ता बनाया जा सकता है. इस प्रकार कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी में सहायक सामग्री की उपलब्धता पर भी ध्यान रखना होगा।  

जैसा कि लेख के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि ‘आकलन’ शिक्षण प्रक्रिया में सम्मिलित है जो सतत चलता है तो इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि एक शिक्षक अपनी शिक्षण प्रक्रिया के दौरान सभी बच्चों का यथोचित अवलोकन करता रहे. और अभ्यास और अनुप्रयोग का अवसर बच्चों को आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराता रहे. शिक्षक को हमेशा अनेक औपचारिक व अनौपचारिक मूल्यांकन के तरीकों को अपने शिक्षण प्रक्रिया में स्थान देना चाहिए. मूल्यांकन चाहे जिस तरीके का हो वह लक्ष्य आधारित होना चाहिए. यह भी सत्य है कि अच्छी तरह से विकसित पाठ्यक्रम में मूल्यांकन / आकलन के धटक स्वमेव शामिल होता है.समझ आधारित आकलन करते समय यह देखा जाना चाहिए कि बच्चे अपने उत्तरों में अपने तर्क को कितना स्थान देते है.

एक अच्छी शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक बच्चों का आकलन केवल ग्रेड देने के लिए नहीं बल्कि बच्चों की उपलब्धि को समग्रता में देखने के लिए करता है. साथ ही वह सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान ही बच्चों की उपलब्धि व उन्हें सीखने में आने वाली कठिनाइयों का सतत अनुवीक्षण करते रहता है.

कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी के संदर्भ में जहां तक सीखने और आकलन का सम्बन्ध है ज्यादातर बच्चों को अभ्यास के मौके और करके देखने का मौक़ा देने से वे सीखने के लिए उत्साहित नज़र आते हैं. वे अपने सीखे हुए को और अच्छा करने के लिए अभ्यास करते है, बशर्ते सीखने का वातावरण शिक्षक ने बनाई हो. आकलन की कड़ी  में अभ्यास और अनुप्रयोग की दिशा में अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बच्चों को गृहकार्य देना भी एक सार्थक कदम हो सकता है. यद्यपि बच्चों को गृहकार्य देना आदर्श स्थिति में अनुचित समझा जाता है. इसके बावजूद प्रश्नों की प्रकृति और उसके कठिनाई के स्तर को ध्यान में रखकर गृहकार्य देने से अभ्यास के अवसर को बढाया जा सकता है. यह गृहकार्य ऐसा हो सकता है जिसे वह स्वतंत्र रूप से स्वयं कर सके. गृह कार्य देने के बाद यह सावधानी रखनी पड़ती है कि अगले दिन बच्चे जब शाला आए तो उसे जांचा – परखा जाए, सुधार की आवश्यकता पड़ने पर सुधारने का मौक़ा बच्चों को अवश्य दिए जाएं.

अब हम बात करते हैं कक्षा शिक्षण:उद्देश्य-तैयारी में चक्र के अंतिम हिस्से ‘चिंतनशील सोच’ (Reflective Thinking) की. यह एक कौशल है जो शिक्षक एवं शिक्षण के मध्य का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. यह एक तरह का स्व आकलन / समीक्षा जैसा कुछ है. जिसमें शिक्षक को अपने किए गए प्रयास को उद्देश्यपूर्ण उपलब्धि के साथ जोड़कर देखता है और अपने प्रयासों में लगातार सुधार करता है.

निष्कर्ष

इस प्रकार कक्षा शिक्षण: उद्देश्य-तैयारी में शिक्षा के सभी पहलुओं को देखना एक अच्छी शिक्षण प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है. आखिरकार शिक्षा तंत्र की उपादेयता इसी में है कि बच्चे का सर्वांगीण विकास हो और वे एक ऐसे समाज की रचना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके जिसे संविधान की प्रस्तावना में संवैधानिक मूल्यों के रूप में परिकल्पित की गयी है.

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By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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