वर्ष 1986 के 34 साल बाद देश को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मिली जिसमें बुनियादी साक्षारता एवं संख्या ज्ञान पर ज़ोर देते हुए शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त करने की बात कही गई है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – NEP 2020 

भारत द्वारा 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा  के अनुसार वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक ‘’सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता युक्त  शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन-पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य है। जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से प्राप्त करने की मंशा है 

पुराना स्कूली ढांचा  नया स्कूली ढांचा 
कक्षा 11 और 12 (16 से 18 आयु वर्ग के बच्चे Secondary (4 वर्ष – कक्षा 9 से 12 अर्थात 14 से 18 वर्ष के बच्चे
 कक्षा 1 से 10 (6 से 16 आयु वर्ग के बच्चे) Middle (3 वर्ष –  कक्षा 6 से 8 अर्थात 11 से 14 वर्ष के बच्चे)
Preparatory (3 वर्ष – कक्षा 3 से 5 अर्थात 8 से 11 वर्ष के बच्चे )
Foundational (3 वर्ष – आंगनबाड़ी-बालवाड़ी) तथा 2 वर्ष कक्षा 1 व 2 (6 से 8 वर्ष के बच्चे)

Structure of School in NEP 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि

शिक्षा की विषयवस्तु ऐसी हो जो –

  • बच्चों को समस्या-समाधान, तर्क शक्ति एवं रचनात्मक रूप से सोचना सिखाती हो।
  • बच्चे विषयों के बीच अंतर संबंध देख पाते हों।
  • नया सोच और नई जानकारी को नई परिस्थितियों में उपयोग में करना सिखाती हो।
  • शिक्षा शिक्षार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलित विकास करती हो

प्रक्रिया ऐसी हो जो –

  • शिक्षार्थी केन्द्रित हो, जिज्ञासा, खोज, अनुभव और संवाद के अवसर देती हो।
  • समग्रता और समेकित रूप से देखने-समझने में सक्षम बनाती हो।

पाठ्यक्रम में –

  • विज्ञान और गणित के अलावा बुनियादी शिक्षा, शिल्प, मानविकी, खेल और फिटनेस, भाषाओं, साहित्य, संस्कृति और मूल्य शामिल हो ।
  • शिक्षा से बच्चों में चरित्र निर्माण होता हो।
  • बच्चों में नैतिकता, तार्किकता, करुणा और संवेदनशीलता विकसित करने के गुण हों, और रोजगार के लिए सक्षम बनाती हो।
  • 2040 तक भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली हो जो सभी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले  बच्चों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध कराती हो।
  • शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्या ज्ञान जैसी बुनियादी क्षमताओं के साथ-साथ उच्चतर स्तर की तार्किक और समस्या-समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास के साथ-साथ नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्ति का विकास करती हो।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से पिछली नीतियों का परिणाम

निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 रहा है जिसने सार्वभौमिक  प्रारम्भिक शिक्षा सुलभ  कराने हेतु कानूनी आधार उपलब्ध करवाया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार सिद्धान्त 

शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य-

ऐसे इंसानों का विकास – जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हो। जिसमें करुणा, सहानुभूति, साहस और लचीलापन हो। वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पना शक्ति , नैतिक मूल्य और आधार हों। इसका उद्देश्य है जो कि अपने संविधान द्वारा परिकल्पित – समावेशी, और बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान करे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मूलभूत सिद्धान्त 

  • हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति, पहचान और उनके विकास हेतु प्रयास करना – शिक्षकों और अभिभावकों को इन क्षमताओं के प्रति संवेदनशील बनाना जिससे वे बच्चे की अकादमिक और अन्य क्षमताओं में उसके सर्वांगीण विकास  पर भी पूरा ध्यान दें।
  • बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता देना – जिससे सभी बच्चे कक्षा 3 तक साक्षरता और संख्या ज्ञान जैसे सीखने के मूलभूत कौशल को हासिल कर सकें।
  • लचीलापन, ताकि शिक्षार्थियों में उनके सीखने के तौर-तरीके और कार्यक्रमों को चुनने की क्षमता हो, और इस तरह वे अपनी प्रतिभा और रुचियों के अनुसार जीवन में अपना रास्ता चुन सकें;

  • कला और विज्ञान के बीच, पाठ्यक्रम और पाठ्येत्तर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं, आदि के बीच कोई स्पष्ट अलगाव न हो।
  • सामाजिक विज्ञान, कला, मानविकी और खेल के बीच एक बहु-विषयक (multi-disciplinary) और समग्र शिक्षा का विकास ।
  • अवधारणात्मक समझ पर ज़ोर, न कि रटंत पद्धति और केवल परीक्षा के लिए पढ़ाई।
  • रचनात्मकता और तार्किक सोच तार्किक निर्णय लेने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए।
  • नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य जैसे, सहानुभूति, दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतान्त्रिक भावना, सेवा की भावना, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, वैज्ञानिक चिंतन, स्वतन्त्रता, ज़िम्मेदारी, बहुलतावाद, समानता और न्याय।
  • बहु-भाषिकता पर ज़ोर।
  • जीवन कौशल जैसे- आपसी संवाद, सहयोग, सामूहिक कार्य, और लचीलापन।
  • सीखने के लिए सतत मूल्यांकन पर ज़ोर।
  • साल के अंत में होने वाली परीक्षा को केंद्र में रखकर शिक्षा को निरुत्साह करना जिससे कि आज की ‘कोचिंग संस्कृति’ को ही बढावा मिलता है।
  • तकनीकी के यथासंभव उपयोग पर ज़ोर।
  • सभी पाठ्यक्रम, शिक्षण शास्त्र और नीति में स्थानीय संदर्भ की विविधता और स्थानीय परिवेश के लिए एक सम्मान।
  • पूर्ण समता और समावेशन कि सभी छात्र शिक्षा प्रणाली में सफलता हासिल कर सकें
  • उत्कृष्ट् स्तर का शोध;
  • शैक्षिक विशेषज्ञों द्वारा निरंतर अनुसंधान और नियमित मूल्यांकन के आधार पर प्रगति की सतत समीक्षा;
  • भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना, और जहां प्रासंगिक लगे वहाँ भारत की समृद्ध और विविध प्राचीन और आधुनिक संस्कृति और ज्ञान प्रणालियों और परंपराओं को शामिल करना और उससे प्रेरणा पाना.

 इस नीति का विज़न

इस राष्ट्रीय शिक्षा का विज़न भारतीय मूल्यों से विकसित शिक्षा प्रणाली है जो सभी को उच्चतर गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराके और भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाकर भारत को एक जीवंत और न्याय संगत ज्ञान समाज में बदलने के लिए प्रत्यक्ष रूप से योगदान करेगी। …

 प्रारम्भिक  बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा  : सीखने की नीव

क्योंकि –

  • बच्चों के मस्तिष्क का 85 % विकास 6 वर्ष की अवस्था से पूर्व ही हो जाता है।
  • अतः बच्चों के मस्तिष्क का उचित विकास और शारीरिक वृद्धि को सुनिश्चित  करना।

प्रारम्भिक बाल्यावस्था विकास , देखभाल के लिए गुणवततापूर्ण शिक्षा के सार्वभौमिक प्रावधान को जल्द से जल्द, निश्चय ही वर्ष  2030 स पूर्व उपलब्ध  किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाले सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के लिए पूरी  तरह से तैयार हो ।

इस स्तर पर शिक्षा में

लचीली, बहुआयामी, बहु-स्तरीय, खेल-आधारित, गतिविधि –आधारित और खोज-आधारित शिक्षा को शामिल किया गया है। जैसे – अक्षर , भाषा, संख्या, गिनती, रंग, आकार, इंडोर एव आउटडोर खेल, पहेलियाँ और तार्किक सोच, समस्या सुलझाने की कला, इसके साथ अन्य कार्य जैसे सामाजिक कार्य, मानवीय संवेदना आदि पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

एनसीईआरटी द्वारा 8 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए दो भागो में  प्रारम्भिक बाल्यावस्था की शिक्षा के लिए एक उत्कृष्ट पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित किया जाएगा-

  • 0-3 वर्ष के बच्चों के लिए एक सब-फ्रेमवर्क और
  • 3-8 साल के लिए एक अन्य सब-फ्रेमवर्क का विकास किया जाएगा।

बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान : सीखने के लिए एक तात्कालिक आवश्यकता और पूर्व शर्त

बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान के कौशलों को प्राप्त करने के लिए एक अभियान चलाया जाएगा जिसे 2025 तक प्राप्त करना होगा।

इसके लिए MHRD द्वारा एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की जाएगी।

पाठ्यक्रम और शिक्षण शास्त्र:

  • अधिगम समग्र, एकीकृत, आनंददायी और रुचिकर होगा।
  • शिक्षा विधि का केंद्र बिन्दु – रटने के स्थान पर वास्तविक समझ और ज्ञान होगा ।
  • शिक्षा का उद्देश्य केवल संज्ञानात्मक समझ न होकर चरित्र निर्माण और 21वीं शताब्दी के कौशलों को बढ़ाना होगा।
  • विषयवस्तु को कम करके उसे आलोचनात्मक चिंतन, खोज आधारित, विश्लेषण आधारित अधिगम पर ज़ोर दिया जाएगा।
  • इसमें मुख्य अवधारणाओं विचारों, अनुप्रयोगों और समस्या समाधान पर फोकस होगा।
  • प्रायौगिक आधारित अधिगम अर्थात करके सीखना पर ज़ोर दिया जाएगा।
  • कहानी – आधारित शिक्षण शास्त्र को प्रत्येक विषय में मानक शिक्षण शास्त्र के रूप में देखा जाएगा।
  • भारतीय कला एवं संस्कृति को स्थान दिया जाएगा।
  • स्वतः पहल करना, स्व-अनुशासन, टीम भावना ज़िम्मेदारी आदि गुणों का विकास कराते हुए बच्चों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास को बल देना होगा।
  • माध्यमिक विद्यालय में अध्ययन करने के लिए अधिक लचीलापन और विषयों के चुनाव के विकल्प दिए जाएंगे। (शारीरिक शिक्षा, कला, शिल्प कला आदि)
  • ‘पाठ्यक्रम’, अतिरिक्त-पाठ्यक्रम’ या ‘सह-पाठ्यक्रम’, कला’, ‘मानविकी’ और ‘विज्ञान’, अथवा ‘व्यावसायिक’ या ‘अकादमिक’ धारा जैसी कोई वर्ग नहीं होगा।
  • विज्ञान, मानविकी और गणित के अलावा भौतिक शिक्षा, कला और शिल्प, और व्यावसायिक कौशलों जैसे विषयों को स्कूल के पूरे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
  • घरेलू भाषा / मातृ भाषा पर ज़ोर (कक्षा 5 तक या 8 तक भी उपयोग)
  • विज्ञान सहित सभी विषयों में पाठ्य पुस्तकों को घरेलू / मातृ भाषा में उपलब्ध कराना
  • फ़ाउंडेशन स्टेज की शुरुआत और इसके बाद से ही बच्चों को विभिन्न भाषाओं में (लेकिन मातृभाषा पर विशेष जोर देने के साथ) एक्सपोज़र दिए जाएंगे।
  • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की ज़रूरत का ध्यान रखते हुए त्रि-भाषा फार्मूले को लागू किया जाना जारी रहेगा।
  • विज्ञान और गणित में द्विभाषा पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण अधिगम सामग्री को तैयार करने के सभी प्रयास किए जाएंगे ताकि विद्यार्थी दोनों विषयों पर सोचने और बोलने के लिए अपने घर की भाषा/मातृभाषा और अंग्रेजी दोनों में सक्षम हो सकें।
  • देश में प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ाई के दौरान ‘द भारत का ज्ञान’ पर एक मजेदार प्रोजेक्ट / गतिविधि में भाग लेगा; उदाहरण के लिए, ग्रेड 6-8 में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल।
  • संस्कृत को, त्रि-भाषा के मुख्य धारा विकल्प के साथ, स्कूली और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण, समृद्ध विकल्प के रूप में पेश किया जाएगा।
  • भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उच्चतर गुणवत्ता वाले कोर्स के अलावा, विदेशी भाषाएं, जैसे कोरयाई, जापानी, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, पुर्तगाली और रूसी भी माध्यमिक स्तर पर व्यापक रूप से अध्ययन हेतु उपलब्ध करवाई जाएंगी, ताकि  विद्यार्थी सभी संस्कृतियों के बारे में जाने।
  • भारतीय साइन लेंगवेज़ (आईएसएल) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा।
  • माध्यमिक स्तर पर कोडिंग संबंधी गतिविधियां शुरू करना।
  • प्रत्येक विद्यार्थी कक्षा 6 से 8 के बीच व्यावसायिक शिल्प जैसे – बढ़ई गिरि, बिजली का काम, धातु का काम, बागवानी, मिट्टी के बर्तनों का निर्माण, आदि हाथों से काम का अनुभव प्राप्त करेगा।
  • कक्षा 6 से 8 के सभी विद्यार्थियों के लिए दस दिन के बस्ता-रहित कालखंड होगा जब वे स्थानीय व्यावसायिक विशेषज्ञों, जैसे बढ़ई, माली, कुम्हार, कलाकार आदि के साथ प्रशिक्षु के रूप में काम करेंगे।
  • “भारत का ज्ञान” में आधुनिक भारत और उसकी सफलताओं और चुनौतियों के प्रति प्राचीन भारत का ज्ञान और उसका योगदान शामिल होगा।
  • भारतीय संविधान के अंश भी सभी छात्रों के लिए पढ़ना आवश्यक।
  • फाउंडेशनल स्तर से शुरू करके बाकी सभी स्तरों तक, पाठ्यचर्या और शिक्षण शास्त्र को एक मजबूत भारतीय और स्थानीय संदर्भ देने की दृष्टि से पुनर्गठित किया जायेगा।
  • पाठ्य पुस्तकों में अनेक विकल्प उपलब्ध कराना।
  • पाठ्य पुस्तकों के अनेक सेट्स में अपेक्षित राष्ट्रीय और स्थानीय सामग्री शामिल होगी। इसके चलते वे ऐसे तरीके से पढ़ा सकें जो उनकी अपनी शिक्षण शास्त्रीय शैली और उनके छात्रों की एवं समुदायों की ज़रूरत के मुताबिक हो।

विद्यार्थियों के विकास के लिए आकलन में आमूल-चूल परिवर्तन –

  • योगात्मक आकलन के स्थान पर दक्षता आधारित रचनात्मक आकलन की ओर ले जाना, जो विश्लेषण, तर्क शक्ति, चिंतन और अवधारणात्मक स्पष्ट्ता को जांचता है।
  • सीखने के लिए आकलन को लागू करना।
  • प्रस्तावित राष्ट्रीय आकलन केंद्र, एनसीईआरटी और एससीईआरटी के मार्गदर्शन में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रगति कार्ड को पूरी तरह से नया स्वरूप देना
  • 360 डिग्री प्रगति कार्ड जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी के संज्ञानात्मक, भावात्मक, साइकोमोटर डोमेन में विकास का बारीकी से किए गए विश्लेषण का विस्तृत विवरण होगा
  • प्रगति कार्ड में स्व-मूल्यांकन, सहपाठी मूल्यांकन, प्रोजेक्ट कार्य और खोज-आधारित अध्ययन में प्रदर्शन, क्विज, रोल प्ले, समूह कार्य, पोर्टफोलियो आदि शिक्षक मूल्यांकन को सम्मिलित करना।
  • 10 और 12 के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी, कोचिंग कक्षाओं की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए बोर्ड और प्रवेश परीक्षाओं की मौजूदा प्रणाली में सुधार किया जाएगा।
  • स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति (एक मुख्य परीक्षा और यदि वांछित हो तो एक सुधार के लिए)।
  • सभी विद्यार्थियों को एक उपयुक्त प्राधिकरण द्वारा संचालित ग्रेड 3, 5 और 8 में स्कूल की परीक्षा देनी होगी।
  • ग्रेड 3 की परीक्षा बुनियादी साक्षरता, संख्या-ज्ञान और अन्य मूलभूत कौशलों का परीक्षण करेगी।
  • एक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र होगा जो स्टेट अचिवमेंट सर्वे का मार्गदर्शन एवं नेशनल अचिवमेंट सर्वे का संचालन करेगा।

शिक्षक

  • 4-वर्षीय एकीकृत बी. एड. कार्यक्रम
  • अध्ययन के लिए बड़ी संख्या में मेरिट आधारित छात्रवृत्ति
  • ग्रामीण क्षेत्र में, कुछ विशेष मेरिट आधारित छात्र वृत्ति जिसके तहत चार वर्षीय बी. एड. डिग्री सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद स्थानीय इलाकों में निश्चित रोजगार भी शामिल होगा।
  • ग्रामीण स्कूलों में पढ़ाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय आवास का प्रावधान या आवास भत्ते में वृद्धि होगी।
  • शिक्षकों का स्थानांतरण बहुत ही विशेष परिस्थितियों पारदर्शिता के साथ किए जाएंगे। जो एक ऑनलाइन सॉफ्टवेयर आधारित व्यवस्था के द्वारा किए जायेंगे।
  • स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों (बुनियादी, प्रारम्भिक, और माध्यमिक) के शिक्षकों को शामिल करते हुए भी टीईटी को विस्तृत किया जाएगा। विषय शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में उनके संबन्धित विषय में प्राप्त टीईटी या एनटीए परीक्षा के अंको को भी शामिल किया जाएगा।
  • भर्ती में साक्षात्कार या कक्षा में पढ़ाने का प्रदर्शन करना, स्कूल या स्कूल काम्प्लेक्स में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग होगा।
  • विषयों में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या होगी – विशेष रूप से कला, शारीरिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और भाषाओं जैसे विषयों में – शिक्षकों को एक स्कूल या स्कूल काम्प्लेक्स में भर्ती किया जा सकता है।
  • स्कूल या स्कूल काम्प्लेक्स में विषयों जैसे पारंपरिक स्थानीय कला, व्यावसायिक शिल्प, उद्यमिता, कृषि, या कोई अन्य विषयों के लिए विशेष प्रशिक्षक के रूप में रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • शिक्षकों को –
  • पाठ्यक्रम और शिक्षण में ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी।
  • ऐसी शिक्षा विधि अपनाने के लिए सम्मानित करना जिससे कक्षा में विद्यार्थियों के सीखने के प्रगति में वृद्धि हो।
  • क्षमता वर्धन के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध होंगे।
  • व्यावसायिक विकास के लिए प्रत्येक वर्ष लगभग 50 घंटों के Continues professional Development (CPD)कार्यक्रम करना होगा
  • CPD में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान के नवीनतम शिक्षण शास्त्र, रचनात्मक और अनुकूल आकलन, अनुभवात्मक शिक्षण, और कहानी-आधारित दृष्टिकोण शामिल होगा।

स्कूल के प्रधान पाठक और स्कूल काम्प्लेक्स के प्रमुखों के लिए

  • लीडरशिप और मैनेजमेंट कौशलों को विकसित किया जाएगा।
  • इसके लिए न्यूनतम 50 घंटे का वार्षिक क्षमता विकास कार्यक्रम में भाग लेना होगा
  • इसके लिए ऑनलाइन की भी व्यवस्था होगी।

कैरियर मैनेजमेंट और प्रगति (सीएमपी)-

  • अच्छा कार्य करने के लिए शिक्षकों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • इसके लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों की पहचान होगी।
  • इसके आधार पर उन्हें पदोन्नति और वेतन वृद्धि दी जाएगी।
  • मेरिट आधारित कार्यकाल, पदोन्नति, और वेतन व्यवस्था का निर्माण किया जाएगा।

सीएमपी के लिए शिक्षकों का आकलन –

  • शिक्षकों का प्रत्येक स्तर बहुस्तरीय होगा जिससे बेहतरीन शिक्षकों को प्रोत्साहन और पहचान मिलेगी।
  • शिक्षकों के सही आकलन के लिए राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार द्वारा मल्टीपल पैरामीटर की व्यवस्था होगी जिसमें सह कर्मियों द्वारा की गयी समीक्षा, उपस्थिति, समर्पण, सीपीडी के घंटे और स्कूल और समुदाय में की गयी अन्य सेवा शामिल होगी।
  • योग्यता के आधार अर्थात जिन्होंने लीडरशिप और मैनेजमेंट कौशलों को प्राप्त करेंगे वे आगे चलकर स्कूल, स्कूल काम्प्लेक्स, बीआरसी, सीआरसी, बीआईटीई, डीआईईटी के साथ-साथ संबन्धित सरकारी विभाग और मंत्रालय में अकादमिक नेतृत्व कर सकेंगे।
  • कार्यकाल अवधि या वरिष्ठता के बजाय सिर्फ निर्धारित मानकों के आधार पर पदोन्नति और वेतन में वृद्धि होगी।

व्यावसायिक मानक –

  • इसके अनुसार शिक्षकों का एक कैरियर मैनेजमेंट होगा जिसमें – जिसमें कार्यकाल, व्यावसायिक विकास के प्रयास, वेतन वृद्धि, पदोन्नति, और अन्य पहचान शामिल होंगे।
  • 2030 में राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक मानकों की समीक्षा और संशोधन किया जाएगा और उसके बाद हर दस वर्षों में व्यवस्था विश्लेषण किया जाएगा।

 विशिष्ट शिक्षक–

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि जिन्हें सीखने में कठिनाई (लर्निंग डिषेबिलिटी) होती है, उनके लिए शिक्षा हेतु विशिष्ट शिक्षक होंगे। इन शिक्षकों को सिर्फ विषय शिक्षण ज्ञान और विषय संबन्धित शिक्षा के उद्देश्यों की समझ ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों की विशेष आवश्यकताओं को समझने के लिए उपायुक्त कौशल भी होने चाहिए।

शिक्षक – शिक्षक शिक्षा का दृष्टिकोण-

  • 2030 तक बहू-विषयक कालेजों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से ही शिक्षक शिक्षा की व्यवस्था होगी। जहां शिक्षा में बीएड, एमएड और पीएचडी की डिग्री प्रदान करेंगे।
  • शिक्षण के लिए न्यूनतम योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री होगी
  • विशिष्ट विषयों में स्नातक प्राप्त छात्रों के लिए 2 वर्षीय तथा बहु विषयक 4 वर्षीय स्नातक या परा-स्नातक डिग्री वालों के लिए 1 वर्षीय बी॰ एड॰ डिग्री होगी जो विशिष्ट विषय में शिक्षक बनना चाहते हों।
  • सभी बी.एड. कार्यक्रम में किसी भी विषय को पढ़ाने या किसी भी गतिविधि को करने के दौरान भारतीय संविधान के मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51 A) और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने पर बल दिया जाएगा।
  • इसमें पर्यावरण के प्रति जागरूकता, संरक्षण तथा संवेदनशीलता का भी ध्यान रखा जाएगा।
  • शिक्षकों को बी.एड. के बाद कुछ अल्प-अवधि के सर्टिफिकेट कोर्स भी  होंगे जो शिक्षण के विशिष्ट क्षेत्रों जैसे कि विशेष – जरूरत वाले  विद्यार्थियों  के शिक्षण या स्कूली शिक्षा प्रणाली में नेतृत्व और प्रबंधन के पदों पर जाना चाहते हैं.
  • स्थानीय कला, संगीत, कृषि, व्यवसाय, खेल, बढ़ईगीरी और अन्य व्यावसायिक शिल्प को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रख्यात स्थानीय व्यक्तियों को स्कूल या स्कूल परिसरों में ‘मास्टर प्रशिक्षक’ के रूप में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जाएगा।
  • अंततः, अध्यापक शिक्षा प्रणाली की प्रमाणिकता को पूर्णतया बनाए रखने के लिए देश में चलाये जा रहे अवमानक स्टैंड अलोन अध्यापक शिक्षा संस्थानों (टीईआई) ज़रूरी हो तो उन्हें बंद किया जाना शामिल है।

समता मूलक और समावेशी शिक्षा: सभी के लिए अधिगम-

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार प्रत्येक स्तर पर शिक्षा को सामाजिक न्याय और समानता प्राप्त करने का एकमात्र और सबसे प्रभावी साधन के रूप में देखा जाएगा।
  • नई शिक्षा नीति इस बात की पुनः पुष्ट करती है कि स्कूली शिक्षा में पहुँच, सहभागिता और अधिगम परिणामों में सामाजिक श्रेणी के अंतरालों को दूर करना सभी शिक्षा क्षेत्र विकास कार्यक्रमों का मुख्य लक्ष्य होगा।
  • आरपीडबल्यूडी अधिनियम 2016 के अनुसार, मूल दिवयांगता वाले बच्चों के पास नियमित या विशेष स्कूली शिक्षा का विकल्प होगा ।

 स्कूल कॉम्प्लेक्स / कलस्टर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस-

  • यू-डाइज, 2016-17 के आंकडे के अनुसार, भारत के 28% सरकारी प्राथमिक स्कूलों और 14.8% उच्चतर प्राथमिक स्कूलों में 30 से भी कम छात्र पढते हैं। कक्षा 1 से 8 तक के स्कूलों में प्रति कक्षा औसतन 14 छात्र हैं जबकि बहुत से स्कूलों में तो यह औसत मात्र 6 से कम है।
  • इन चुनौतियों को राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा 2025 तक स्कूलों के समूह बनाने या उनकी संख्या को समुचित रूप देने के लिए नवीन प्रक्रिया अपनाकर समाधान किया जाएगा।
  • सभी स्कूलों के लिए सभी विषयों के शिक्षक, पर्याप्त संसाधन पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब, खेल के मैदान, खेल उपकरण जैसी सुविधाओं के लिए

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार काम्प्लेक्स नामक एक स्कूल कॉम्प्लेक्स संरचना की स्थापना होगी, जिसमें एक माध्यमिक विद्यालय होगा जिसमें पांच से दस किलोमीटर के दायरे में आंगनवाडी केन्द्रों सहित अपने पड़ोस में निचले ग्रेड की अन्य सभी विद्यालय होंगे। जिससे व्यवस्था एवं संसाधनों की उपलब्धता एवं बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा

  • स्कूल कॉ्मप्लेक्स / क्लस्टर को काफी स्वायत्तता प्रदान की जाएगी जिससे वे पाठ्यक्रम स्तर पर रचनात्मक कार्य कर सकेंगे।
  • शाला प्रबंध समिति के माध्यम से अपनी योजनायें (एसडीपी) बनायेंगे। स्कूलों के प्लान के आधार पर स्कूल कॉ्मप्लेक्स / क्लस्टर विकास योजना (एससीडीपी) बनाये जायेंगे।
  • अल्प अवधि (एक वर्ष) और दीर्घ अवधि (3 से 5 वर्ष) के लिए संसाधन (वित्तीय, मानव और भौतिक आदि) उपलब्ध कराया जाएगा।
  • बाल भवन स्थापित करने के लिए हर राज्य/जिले को प्रोत्साहित किया जायेगा जहां हर उम्र के बच्चे सप्ताह में एक या अधिक बार (उदाहरण के लिए सप्ताहांत में) जा सकें और कला, खेल और करियर संबंधी गतिविधियों में भागीदारी कर सकें। ऐसे बाल भवन जहां संभव हो स्कूल कॉ्मप्लेक्स / क्लस्टर के हिस्से भी हो सकते हैं।

स्कूली शिक्षा के लिए मानक निर्धारण और प्रमाणन-

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इसके लिए –

  • स्कूली शिक्षा नियामक प्रणाली का गठन किया जाएगा।
  • जो शैक्षिक परिणामों में सुधार के लिए कार्य करेगा।
  • अकादमिक मानकों और पाठ्यक्रम के साथ सभी शैक्षणिक परिणाम के लिए एससीईआरटी को एक संस्थान के रूप में सुदृढ़ किया जाएगा।
  • सीआरसी, बीआरसी और डीआईईटी जैसे संस्थानों को 3 वषों के अन्दर निश्चित रूप से इनकी क्षमताओं और कार्य-संस्कृति को बदल कर इन्हें उत्कृष्ट्ता के जीवंत संस्थान के रूप में स्थापित करेगा।

NEP 2020 PPT

धन्यवाद

 

 

By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

2 thoughts on “राष्ट्रीय शिक्षा नीति – NEP 2020”
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