शिक्षा के उद्देश्य क्या है 

शिक्षा के सभी हितधारकों के लिए शिक्षा के उद्देश्यों से भलीभाँति अवगत होना समाज के लिए एक अच्छा उपक्रम साबित होगा। यहाँ हितधारकों से आशय है शिक्षक एवं प्रधान अध्यापक (स्कूल स्तर पर), शाला संकुल (Cluster) स्तर पर संकुल समन्वयक, विकासखंड स्तर पर विकासखंड स्रोत समन्वयक एवं विकासखंड शिक्षा अधिकारी। इसी तरह जिले एवं राज्य स्तर पर जिम्मेदार सभी अधिकारीगण। ये उद्देश्य शिक्षकों को इस तरह मदद करता है कि वे अपनी कक्षा की क्रियाकलापों को भविष्य के परिणामों से जोड़ सके। इसी तरह सभी हितधारकों को इस रूप में मदद करता है कि वे शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन व दिशा मिलता रहे।

अब तक की परंपरा रही है कि शाला में बच्चों की उपलब्धि स्तर को उनके द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों या श्रेणी (Grade) में देखा गया है। यह परंपरा बच्चों को रटंत प्रणाली की ओर ले जाती है और वे जब वास्तविक जीवन में प्रवेश करते हैं तो अपने आप को समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं। क्योंकि वास्तविक जीवन में ज्ञान-अवधारणा-मूल्य और कौशलों से सामना होता है जिनका विकास रटंत प्रणाली की शिक्षा से संभव नहीं है।   

उपरोक्त दृष्टिकोण के अलावा समाज के मौजूदा महत्वाकांक्षाओं व जरूरतों के साथ शाश्वत मूल्यों तथा मानवीय आदर्शों का प्रतिबिंब देखना हो तो हमें शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों पर दृष्टिपात करना होगा। इसी तरह शिक्षा के उद्देश्य हमारे स्कूलों व शिक्षा संस्थानों में चलाई जा रही गतिविधियों को समझने व दिशा प्रदान करने के लिए जरूरी है।  

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कुछ सवाल –

शिक्षा के उद्देश्यों को समझने व चिंतन-मनन करने से पहले उपरोक्त सभी हितधारकों को स्वयं से कुछ बुनियादी सवाल करने होंगे जिसका उल्लेख राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में किया गया है। ये सवाल हैं-

  1. स्कूल किन शैक्षिक उद्देश्यों को पूर्ण करने की कोशिश करें?
  2. इन उद्देश्यों के लिए कौन से शैक्षिक अनुभव उपयुक्त होंगे?
  3. इन शैक्षिक अनुभवों को कैसे सार्थक रूप से नियोजित किए जा सकते हैं?
  4. कैसे सुनिश्चित करें कि शैक्षिक उद्देश्य पूरे हो रहे हैं?

अब देखते हैं कि विभिन्न दस्तावेजों में शिक्षा के उद्देश्यों का किस प्रकार देखा गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 –

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विज़न में शिक्षा प्रणाली के जिन उद्देश्यों का जिक्र किया गया है, उनमें मुख्य है –

  • भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना।
  • न्यायसंगत समाज की रचना करना।
  • संवैधानिक मूल्यों का विकास।
  • बदलते विश्व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता उत्पन्न करना।

शिक्षा के संवैधानिक उद्देश्य-

हम संविधान की प्रस्तावना / उद्देशिका (Preamble) का गंभीरता से अध्ययन करें तो हमें एक दिशा मिलती है कि शिक्षा के अंतिम उद्देश्य क्या होने चाहिए। इसमें एक ऐसे समाज की परिकल्पना की गई है जहां –

  • नागरिकों में प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास हो।
  • नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय मिलता हो।
  • नागरिक धर्म / पंथ निरपेक्ष हों।
  • लिंग, जाति एवं धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता हो।
  • एक दूसरे के प्रति नागरिकों में सम्मान हो।
  • विचार, अभिव्यक्ति, धर्म, उपासना की स्वतन्त्रता नागरिकों को हो।
  • प्रतिष्ठा और अवसर की समता हो और यही शिक्षा का संवैधानिक उद्देश्य है।
राष्ट्रीय पाठचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF) में वर्णित शिक्षा के लक्ष्य-

इस पाठचर्या में जिन शैक्षिक उद्देश्यों का जिक्र किया गया है वे इस प्रकार हैं-

  • लोकतन्त्र, समानता, न्याय, स्वतन्त्रता, परोपकार, धर्म निरपेक्षता, मानवीय गरिमा, व अधिकार तथा दूसरे के प्रति आदर जैसे मूल्यों का विकास करना।
  • विचार तथा क्रिया की आजादी।
  • मूल्य निर्धारित निर्णय लेने की क्षमता।
  • लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता।
  • सीखने के लिए सीखना व जो सीख चूकें हैं उसे छोड़ना व दुबारा सीखने की ललक।
  • लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के सामर्थ्य।
  • सामाजिक – आर्थिक प्रक्रियाओं की समझ पैदा करना।
  • सौंदर्य व कला के विभिन्न रूपों को समझना।

उपरोक्त शिक्षा के उद्देश्यों को कार्य रूप में परिणित करने के लिए हमें शिक्षण के कुछ मूलभूत सिद्धांतों को कक्षा में लागू करना होगा। इन सिद्धांतों को राष्ट्रीय पाठचर्या की रूपरेखा 2005 में इस तरह कहा गया है-

  • ज्ञान को बाहरी जीवन से जोड़ना।
  • पढ़ाई को रटंत प्रणाली से बाहर लाना।
  • पाठचर्या में बच्चों को चहुंमुखी विकास का अवसर देना ताकि बच्चे पाठ्य पुस्तक केन्द्रित न हो जाएँ।
  • परीक्षा को लचीला बनाते हुए उसे कक्षा की गतिविधियों से जोड़ना।
  • प्रजातांत्रिक राज्य-व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताओं को समाहित करना।
निष्कर्ष –

उपरोक्त शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हमें अपने बच्चों में कुछ कौशल विकसित करने होंगे। जैसे- उन्हें विवेकशील व तार्किक बनाना होगा, रचनात्मकता के लिए प्रेरित करना व इसके लिए अवसर देना होगा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना होगा, जिससे बच्चे वयस्क जीवन में संवैधानिक मूल्यों पर आधारित समाज की रचना में अपना योगदान दे सकें। अतः जरूरी है कि शिक्षा के सभी हितधारकों को विशेषकर हमारे शिक्षकों व सभी शैक्षिक संस्थानों को स्कूलों में पढ़ाये जाने वाले विभिन्न स्कूली विषयों के शिक्षण उद्देश्यों को समझते हुए कक्षा शिक्षण व अभ्यास को दिशा देनी होगी।

संबन्धित लेख –  शिक्षा क्या है ?

संदर्भ ग्रंथ –

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली।   

 

By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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