सामाजिक संस्थान की विशेषताओं को समझते हुए इसे पहचानने के लिए कुछ उदाहरणों को समझेंगे। इसके लिए परिवार, विवाह, राजनीति में विद्यमान उन विशेषताओं को समझने का प्रयास करेंगे जिससे उन्हें हम एक सामाजिक संस्थान के रूप में देख सकें। 

सामाजिक संस्थान 

परिवार एक सामाजिक संस्थान

प्रत्यक्ष नातेदारी संबंधों से जुड़े व्यक्तियों का एक समूह को परिवार कहते हैं। जिसके बड़े सदस्य बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व लेते हैं.
प्राकृतिक (नैसर्गिक) के रूप में परिवार को एक सामाजिक संस्थान माना गया है, क्योंकि यह सभी समाजों में प्रारम्भ में ही विद्यमान रहा है. किसी समाज का स्वरूप चाहे कैसा भी रहा हो उनमें परिवार-विवाह-नातेदारी सदैव से रहा है.  परिवार को एक सामाजिक संस्थान माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को रेखांकित किया जा सकता है-
  1.       एक संस्था का अन्य संस्थाओं से सम्बन्ध होना. परिवार जो कि एक निजी क्षेत्र है आर्थिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक आदि सार्वजनिक संस्थाओं से सम्बन्ध रहा है.
  2. .      संस्थानों की तरह परिवार का भी एक कार्य व दायित्व होता है.
  3. .      किसी संस्थान (परिवार) का कार्य समाज की व्यवस्थाओं को बनाए रखने में मदद करता है. जैसे- परिवार में यदि महिलाएं घर का काम और पुरुष बाहर का कार्य करते हैं तो यह औद्योगिक समाज को बनाए रखने में मदद करता है.[1][2]
  4.       संस्थाओं के स्वरूपों में परिवर्तन होना. जैसे संयुक्त परिवार से एकल परिवार वाले समाज में परिवर्तन. कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था तथा औद्योगिक अर्थ व्यवस्था वाले शहरीकरण वाले समाज में क्रमशः संयुक्त एवं एकल परिवार का होना.
  5.     एक अन्य विशेषता   संस्थान के पास शक्ति या सत्ता का होना है । जैसे परिवार के मुखिया के द्वारा अपनी शक्ति या सत्ता का उपयोग करते हुए अन्य सदस्यों को कार्य सौंपना.

विवाह एक सामाजिक संस्थान  

सामाजिक संस्थान के रूप में विवाह को माने जाने के निम्नांकित विशेषताओं को चिह्नित किया जा सकता है-
विवाह दो वयस्क (पुरुष-स्त्री) व्यक्तियों के बीच लैंगिक संबंधों की सामाजिक स्वीकृति है.
  1. 1.     संस्थान की ही तरह  अनेक स्वरूप होते हैं. जैसे- एकल विवाह, बहुविवाह.
  2. 2.      विवाह को भी किसी संस्थान की तरह नियंत्रित करने के कुछ नियम होते हैं। जैसे- एकल विवाह में कोई पुरुष किसी समय में एक ही स्त्री से और कोई स्त्री एक ही पुरुष से विवाह कर सकते हैं.
  3. 3.      दूसरे विवाह की अनुमति तभी होगी जब पहले विवाह साथी से तलाक हो गया हो या मृत्यु.
  4. 4.      कुछ समाजों में/परिवारों में यह भी प्रथाएं होती है कि कौन किससे विवाह कर सकता है और किससे नहीं। जैसे एक ही गोत्र में विवाह करने की अनुमति का न होना.

 राजनीति एक सामाजिक संस्थान –
इसे सामाजिक संस्था के रूप में समझने में मुख्य रूप से दो शब्दों (संकल्पनाओं) पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है एक – शक्ति और दूसरा – सत्ता. इसे निम्नांकित दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है-
1.      शक्ति या सत्ता व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास होता है जिसका उपयोग उन व्यक्ति या समूह के लिए होता है जिसके पास ये शक्ति / सत्ता नहीं होती.
2.      राजनैतिक दलों के पास अपने कार्यक्रमों को पूरे देश में लागू करने की शक्ति होती है. इसी तरह दल के अध्यक्ष के पास किसी सदस्य को दल से पृथक करने की शक्ति होती है.
3.      उपरोक्त तरह के सभी शक्तियों का उपयोग सत्ता के माध्यम से किया जाता है.
4.      संस्थान का एक उद्देश्य होता है. राजनैतिक दल अपने उद्देश्यों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से करता है.
5.     इसी तरह संस्थान की एक वैधता होती है. राजनीति में शक्ति का उपयोग सत्ता के माध्यम से करने से उसमें एक प्रकार की वैधता आ जाती है जिसे समाज में न्याय संगत माना जाता है. जिससे शक्ति को संस्थागत स्वरूप मिल जाता है.
6.      एक अन्य विशेषता संस्थान की एक निश्चित संरचना तथा कार्य विधियाँ होती है. इस मायने में ‘राज्य’[3]की एक संरचना व कार्यविधियों को आसानी से चिह्नित किया जा सकता है.
7.      उपरोक्त कार्यविधियों व संरचना पर उस समूह की आस्था होती है जिससे समूह संचालित होता है क्योंकि यह एक वैध व्यवस्था होती है. 
धर्म को सामाजिक संस्थान के रूप में समझने के लिए कुछ तथ्यों को निम्नांकित रूपों में व्यवस्थित किया जा सकता है-
  • 1.      धर्म विश्व के सभी समाजों में विद्यमान है. यद्यपि विभिन्न समाजों में इसका स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है.
  • 2.      किसी संस्थान की तरह विश्व की सभी धर्मों की कुछ सामान्य विशेषताएं होती हैं-

·         प्रतीक / प्रतीकों का समुच्चय
·         सम्मान / श्रद्धा
·         अनुष्ठान-समारोह
·         विश्वासकर्ताओं का समूह
  • 3    सभी धर्मों की एक रीति-रिवाज / प्रथाएं होती हैं.
  • 4.      धर्म का अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ सम्बन्ध होता है. धर्म का राजनीति से सम्बन्ध का एक उदाहरण यह है कि इतिहास में समय-समय पर सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन के लिए धार्मिक आन्दोलन हुए हैं.
  • 5.      धर्म के साथ व्यक्ति / व्यक्तियों के समूह का एक आस्था होता है.
  • 6.      किसी राज्य का धर्म / पंथ निरपेक्ष का होना या न होना भी राजनीति व धर्म के संबंधों को दर्शाता है.
  • 7.      मैक्स वेबर के अनुसार कैल्विनवाद  जो कि प्रोटेस्टेंट इसाई धर्म की एक शाखा है, ने पूंजीवाद के उद्भव व विकास को प्रभावित करता है. कैल्विनवाद के सिद्धांत में मितव्ययता से रहना शामिल है. जिसमे निवेश को पवित्र सिद्धांत माना गया है जो पूंजी उत्पन्न कर आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है.

जीवन पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है शिक्षा जिसमे औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही शिक्षा आती है. यहाँ सामाजिक संस्थान के रूप में शिक्षा को समझने के लिए औपचारिक शिक्षा को आधार बनाया गया है-
  • 1.      शिक्षा एक तरह से सामाजिक दक्षताएं प्राप्त करने का साधन है. जिसके कारण व्यक्ति को / समाज को इसकी आवश्यकता होती है जो प्रायः विश्व के सभी समाजों के लिए सत्य है.
  • 2.      व्यक्ति का समाजीकरण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है.
  • 3.      सभी तरह के समाजों में एक मूल्य होता है.
  • 4.      शिक्षा की रचना एकरूपता, मानकीकृत व सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए होती है. जैसे – विद्यालय में बच्चों की एक जैसी वर्दी का होना.
  • 5.      शिक्षा समाज में विशिष्ट व्यवसाय के लिए तैयार करती है एवं समाज के मूल्यों को आत्मसात करने के लिए तैयार करती है जो सामाजिक मानकों एवं आवश्यकताओं पर निर्भर होती है[4].
  • 6.      प्रकार्यवादियों के अनुसार शिक्षा सामाजिक संरचना को बनाए रखने तथा नवीनीकरण करने में मदद करती है.
  • 7.      शिक्षा समाज में स्तरीकरण के मुख्य अभिकर्ता के रूप में कार्य करती है।
  • 8. इसका असमान वितरण इसी स्तरीकरण का परिणाम है.
  • 9.     एक अच्छी शिक्षा के अवसर अनेक सामाजिक कारकों का परिणाम होता है.

सामाजिक संस्थाओं की विशेषताएं

निष्कर्ष – किसी सामाजिक संस्थान की विशेषताओं को निम्नांकित तरह से सूचीबद्ध किया जा सकता है-
  • 1.      संस्थान के उद्देश्य, कार्य व दायित्व होते है.
  • 2.      विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के मध्य आपसी सम्बन्ध होता है
  • 3.      किसी संस्था का मानक-आस्था-मूल्य होता है 
  • 4.      सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मददगार होता है.
  • 5.      इसका  का स्वरूप परिवर्तनशील होता है.
  • 6.      संस्था के पास एक शक्ति / सता विद्यमान होता है. नियंत्रण करने की शक्ति होती है.
  • 7.      नियमों / प्रथाएं होती है. इसे समाज में वैधता व स्वीकार्यता होती है, विश्वास होता है.
  • 8. संस्था के प्रति समाज का सम्मान होता है.

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By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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