सामाजिक संस्थान के मायने

व्यक्ति अपने जीवन में अनेक निर्णय लेता है। पहली नज़र में यह लगता है कि वह निर्णय स्वयं ले रहा है, परंतु समाजशास्त्रीय दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि उसके निर्णयों के पीछे सामाजिक संस्थानों का प्रभाव होता है। अर्थात, व्यक्ति की सोच, व्यवहार और कार्यों को ये संस्थान प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रित करते हैं।

सामाजिक संस्थान राज्य की तरह व्यापक या परिवार की तरह छोटे हो सकते हैं। परिवार नामक संस्था में विवाह और नातेदारी के नियम व संबंध मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसी तरह राजनीति, अर्थव्यवस्था, धर्म और शिक्षा भी सामाजिक संस्थानों के रूप में कार्य करते हैं।

किसी संस्था की सामान्य विशेषताएँ यह हैं कि—

  • यह किसी नियम, प्रथा या कानून पर आधारित होती है,

  • व्यक्तियों के व्यवहार पर नियंत्रण रखती है,

  • अवसर भी प्रदान करती है,

  • और समाज के किसी उद्देश्य या लक्ष्य की पूर्ति करती है।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

समाजशास्त्र के मायने समझने के लिए उल्लेखनीय है कि होगा  जिस प्रकार समाजशास्त्र के अर्थ को लेकर अनेक विद्वानों की दृष्टियाँ भिन्न हैं, उसी प्रकार सामाजिक संस्थानों के विषय में भी अलग-अलग मत पाए जाते हैं।

प्रकार्यवादी दृष्टिकोण (Functionalist View) के अनुसार सामाजिक संस्थानों में तीन आवश्यक तत्व होते हैं — सामाजिक मानक, आस्था और मूल्य। इनके अनुसार संस्थान दो प्रकार के होते हैं —

  1. औपचारिक संस्थान (जैसे राज्य, कानून, शिक्षा)

  2. अनौपचारिक संस्थान (जैसे परिवार, धर्म)

वहीं, संघर्षवादी दृष्टिकोण (Conflict View) यह मानता है कि समाज में सभी व्यक्ति समान स्थिति में नहीं होते। प्रभावशाली वर्ग अपने हितों की रक्षा हेतु इन संस्थानों का संचालन करते हैं, ताकि उनके विचार ही समाज के सामान्य विचार बन जाएँ। यही वर्ग आगे चलकर शासक की भूमिका निभाता है।

परिवार, विवाह और नातेदारी

परिवार, विवाह और नातेदारी नैसर्गिक सामाजिक संस्थान हैं, जो विश्व के सभी समाजों में पाए जाते हैं। प्रकार्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार, जब पुरुष जीविकोपार्जन में और महिलाएँ परिवार की देखभाल में लगी होती हैं, तब समाज का संतुलन सहज रूप से बना रहता है। हालाँकि, यह व्यवस्था लिंग भेद के प्रश्न को जन्म देती है, क्योंकि इतिहास में महिला श्रमशक्ति ने भी सामाजिक-आर्थिक योगदान दिया है।

उदाहरण के रूप में —
आंध्र प्रदेश की ‘काडर’ जनजाति में पुरुष और महिलाएँ समान रूप से सभी कार्य करती हैं। वहीं कोलम जनजाति (दक्षिण-पूर्व महाराष्ट्र व उत्तरी आंध्र प्रदेश) में महिला-प्रधान परिवार भी पाए जाते हैं, विशेषकर जब पुरुष प्रवास में होते हैं।

आवास एवं नातेदारी के नियम

अध्ययनों से ज्ञात होता है कि समाज में मातृस्थानिक (matrilocal) और पितृस्थानिक (patrilocal) नियम पाए जाते हैं।

  • मातृस्थानिक समाज में पति पत्नी के अभिभावक के घर में रहता है।

  • पितृस्थानिक समाज में पति पत्नी को अपने अभिभावक के घर लाता है।

ये नियम सामाजिक संरचना और संस्थागत व्यवहार के गहरे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

निष्कर्ष:

सामाजिक संस्थान व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं। ये न केवल सामाजिक नियंत्रण का कार्य करते हैं बल्कि समाज में स्थिरता और एकता भी बनाए रखते हैं। इन्हीं संस्थानों के माध्यम से समाज अपने मूल्यों, परंपराओं और संस्कृति को आगे बढ़ाता है।

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By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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