शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ संभावनाएं

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ संभावनाएं (Educational Leadership Challenges and Possibilities) इस दिशा में बेहतर कार्य करने की अनेक संभावनाएं है। विशेषकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए Educational Leadership एक महत्वपूर्ण कौशल सिद्ध होगा। स्कूली शिक्षा में शिक्षकों , प्रधान पाठकों, संकुल समन्वयकों, संकुल प्राचार्यों, विकासखंड स्रोत समन्वयकों तथा विकासखंड शिक्षा अधिकारियों के साथ Educational Leadership पर कार्य एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे अब तक के सभी सर्वे चाहे वह राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वे (National Achievement Survey – NAS) हो या ASER द्वारा किए जा रहे अध्ययन हो, शिक्षा के कमजोर स्वास्थ्य को ही इंगित करते आ रही है।

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ संभावनाएं –  इसमें कार्य करने की अनेक संभावनाएं है।NEP 2020 के उद्देश्यों के लिए यह महत्वपूर्ण क्षेत्र सिद्ध होगा।

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ-संभावनाएं

Educational Leadership Challenges and Possibilities की गहराइयों को समझने के लिए राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2017 एवं 2021 में राज्य के बच्चों की उपलब्धियों का कमजोर स्तर से रूबरू होना तथा इस कमजोर उपलब्धियों के पीछे के कारणों का विश्लेषण एवं जांच पड़ताल करना शैक्षिक नेतृत्व को नई दिशा देने के लिए एक जरूरी कदम होगा तथा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लेखित school Complex (शाला परिसर) व्यवस्था के माध्यम से बाधाओं के बीच शैक्षिक नेतृत्व  की संभावनाओं की तलाश करने के पहले हमें स्कूली शिक्षा में व्याप्त चिंता के दायरे में क्या-क्या है या शिक्षकों से लेकर उच्च अधिकारियों तक किसे चिंता के दायरे (Circle of Concern) में लेते हैं, को देखना होगा। उसके बाद प्रभाव के दायरे में शैक्षिक नेतृत्व में संभावनाएं तलाश करनी होगी।

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ संभावनाएं – चिंता का दायरा (Circle of Concern- CoC)

राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS- National Achievement Survey) एवं ASER के अलग-अलग सर्वेक्षणों से देश के शिक्षा के जिस कमजोर स्वास्थ्य पर पूरा देश चिंता जाहीर करती है उस कमजोर स्वास्थ्य के कारणों पर स्कूली शिक्षा के ज़्यादातर हितधारकों (स्कूल से लेकर उच्च कार्यालयों तक) के विचार जानने पर कमजोर स्वास्थ्य के जो कारण (चिंता के दायरे)   निकलकर आते हैं।  इन निम्नांकित Circle of Concern (C0C)  चिंता के दायरे को एक नज़र देखते हैं –

  • बच्चों की अनियमित उपस्थिती।
  • एकल शिक्षकीय शाला।
  • बच्चों की सामाजिक पृष्ठभूमि अर्थात उनके माता-पिता का कम पढे-लिखे होना, श्रमिक परिवार से बच्चों का आना, माता-पिता के द्वारा बच्चों के पढ़ाई-लिखाई में ध्यान न देना आदि।
  • बच्चों को फेल न करने की नीति।
  • बच्चों को जरा सा भी डांट नहीं सकते। ऐसा करने से पालक एवं राजनैतिक दबाव आने लगता है।
  • शिक्षकों का गैर शिक्षाकीय कार्यों – जानकारी बनाने में ज्यादा समय देना।
  • संकुल समन्वयकों का अपने से उच्च कार्यालयों के लिए जानकारी एकत्रण में लगे होने के कारण शिक्षकों को मार्गदर्शन देने के लिए समय न निकाल पाना।
  • लगातार शिक्षकों एवं संकुल समन्वयकों का प्रशिक्षण एवं जानकारी बनाने में संलग्न रहना।
  • शिक्षा अधिकारियों के पास अत्यधिक प्रशासकीय दायित्व का होना जैसे- प्रशिक्षण समय पर आयोजित हो रहा है या नहीं, शालाएँ समय पर खुल रही है या नहीं, निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें-गणवेश बच्चों को समय पर मिल रहा है या नहीं आदि आदि।

उपरोक्त तरह की स्थितियों को शिक्षा के ज़्यादातर हितधारक NAS तथा ASER के सर्वे द्वारा प्राप्त कमजोर परिणामों को एक तरह के बाधा की तरह देखते हैं। यही उनकी चिंता का दायरे हैं।  इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि उपरोक्त को व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन के लिए अर्थात वे बच्चों के सीखने केलिए शर्तों के रूप में देखते हैं। ये सत्य है कि उपरोक्त व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन बच्चों के सीखने में अवश्य ही सकारात्मक प्रभाव डालेगा। फिर भी हमें शैक्षिक नेतृत्व अर्थात Educational Leadership Challenges and Possibilities को देख पाने के लिए दो प्रश्न करना जरूरी है-

  1. क्या उपरोक्त सूची में दर्ज अधिकांश चीजों को बदलने में क्या हमारे शिक्षक या कोई अन्य हितधारक बदलने में स्वयं सक्षम हैं? उदाहरण के लिए फेल न करने की व्यवस्था को कोई शिक्षक या अधिकारी इसे बदलने में सक्षम है? प्रशिक्षण की अधिकता या बेसमय होने को कोई शिक्षक या विकासखंड या जिले स्तर के अधिकारी रोक सकते हैं? आदि।
  2. क्या हमें उपरोक्त व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन आने तक हाथ में हाथ धरे बैठ जाना चाहिए?

यदि ऊपर के दोनों तरह के प्रश्नों का जवाब ‘हाँ’ है तो इसके आगे लिखे विचार को पढ़ने से कोई फायदा नहीं है। यदि जवाब ‘नहीं’ है तो हमें उन संभावनाओं की तलाश करनी होगी अर्थात हमें अपने प्रभाव का दायरा (Circle of Influence) को ढूँढना होगा / बढ़ाना होगा।

राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा में कार्य करने वाली प्रमुख अलाभकारी संस्था के सी. ई. ओ. भी इस पर विश्वास करते हैं, उनका कहना है कि –

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ-संभावनाएं

उपरोक्त कथन से संबन्धित पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 

छत्तीसगढ़ राज्य के अनेक शैक्षिक अधिकारियों के संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है। वो ये है- समय-समय पर ज़्यादातर शैक्षिक अधिकारियों को  अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन द्वारा संचालित एक स्कूल का भ्रमण करने का मौका मिला। भ्रमण के बाद इस स्कूल के प्राचार्य ने शाला के प्रबंधन एवं अकादमिक व्यवस्था तथा प्राप्त सफलताओं के बारे में अधिकारियों के समक्ष अपनी बात को रखते हुए कहते हैं कि ये सब बेहतर प्रबंधन एवं शैक्षिक नेतृत्व से संभव हो पाता है जिसमें शाला के सभी शिक्षकों की बराबर भागीदारी होती है। जबकि अधिकारियों की औपचारिक एवं अनेक अनौपचारिक अवसरों पर जो राय व्यक्त की जाती थी उसका सार यह होता था कि ये सब वर्तमान में प्रचलित शासकीय व्यवस्था में होना कठिन है। जैसे- बच्चों एवं शिक्षकों के बीच के अनुपात को आदर्श रूप में रख पाना, प्रत्येक स्कूलों में सभी सुविधाओं से युक्त भौतिक संसाधन उपलब्ध कराना आदि। जबकि एक बेहतर  नेतृत्वकर्ता को उन संभावनाओं की तलाश करने होगी जहां से बेहतर परिणाम प्राप्त होने की संभावना दिखे।

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ-संभावनाएं के लिए  (प्रभाव  के दायरे) वर्तमान व्यवस्थाओं (या अव्यवस्थाओं), तमाम बाधाओं के होते हुए भी कुछ संभावनाओं की तलाश करने की कोशिश करेंगे अर्थात हम क्या-क्या कर सकते हैं (प्रभाव का दायरा-Circle of Influence) जिसके लिए न तो कोई अतिरिक्त बजट की आवश्यकता होगी और न ही अपने उच्च कार्यालयों से अतिरिक्त आदेश की जिसका परिणाम बेहतर शिक्षा हो।

 प्रभाव का दायरा (Circle of Influence – CoI)

अब हम उन संभावनाओं वाले शालाओं की तलाश करेंगे जहां से कार्य की शुरुवात गुणात्मक शैक्षिक नेतृत्व के साथ की जा सकती है। इसका आशय ये नहीं है कि हमें अन्य शालाओं में कार्य शुरू नहीं कर सकते हैं, लेकिन कार्य की शुरुवात ऐसी जगह से करना हमेशा अच्छा होता है जहां सफलता मिलने की गुंजाइश ज्यादा होती है, इससे आगे कार्य को जारी रखने की की स्व-प्रेरणा मिलती है-

  1. छात्र शिक्षक अनुपात – सबसे पहले उन शालाओं को चिन्हित करना होगा जहां बच्चों एवं शिक्षक का अनुपात 1: 40 या उससे कम है। क्योंकि ज़्यादातर शिक्षक एवं अधिकारीगण बच्चों के अनुपात में शिक्षकों की कम संख्या का उल्लेख करते हैं। जबकि वे तमाम शाला जहां बच्चों की संख्या के अनुपात में पर्याप्त शिक्षक मौजूद हैं, उन शालाओं में भी बच्चों की उपलब्धि स्तर संतोषजनक नहीं है। ऐसी शालाओं के शिक्षक ये अवश्य कहते हैं कि उनके यहाँ के बच्चे पढ़ने में अच्छे हैं। जबकि अच्छी शाला और अच्छे बच्चों का मापदंड को सीखने का प्रतिफल (Learning Outcomes) के आधार पर देखा जाना चाहिए।
  2. संकुल के अंतर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं की संख्या – उल्लेखनीय है कि 2020 में नई शिक्षा नीति आने के बाद किसी संकुल के अंतर्गत आने वाली शालाओं की संख्या को बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया गया है। 2020 के पहले संकुलों के अंतर्गत औसत प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं की संख्या अत्यधिक थी जबकि अब ऐसा नहीं है। वर्तमान में कई संकुल तो ऐसे हैं जहां एक-एक प्राथमिक-माध्यमिक शाला है। संभावनाओं के रूप में उन संकुलों का चयन पहले किया जा सकता है जहां प्राथमिक एवं माध्यमिक शालाओं की कुल संख्या 4 या उससे कम है। कम से कम ऐसे संकुलों के संकुल अकादमिक समन्वयकों को निश्चित ही अकादमिक मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त समय मिल ही सकता है।
  3. बच्चों की बेहतर उपस्थिती वाली शाला – NAS के सर्वे के आधार पर कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में बच्चों की औसत उपस्थिती 80% से ऊपर है। जबकि बच्चों के सीखने का प्रतिशत 25% के आसपास है। ये आंकड़े ये बताता है कि जो बच्चे नियमित आ रहे हैं वो भी नहीं सीख रहे हैं। अतः हमें ऐसी शालाओं से काम की शुरुवात करनी होगी जहां बच्चों की औसत उपस्थिती संतोषजनक है।
  4. विकासखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित शालाएं – शैक्षिक नेतृत्व से परिणाम देने की शुरुवात उन दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित शालाओं से करना भी एक अच्छा कदम होगा जहां के शिक्षकों को कोई विशेष Exposure अभी तक नहीं मिल पाया है।

शैक्षिक नेतृत्व के कार्यान्वयन का चरणवार रोड मैप (Step wise road map of implementation of educational leadership)

प्रथम चरण – टीम निर्माण

एक कुशल नेतृत्वकर्त्ता अर्थात शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ-संभावनाएं के लिए कार्य को अंजाम देने के लिए सबसे पहले एक टीम का गठन करते हैं और टीम के सदस्यों के रूप में विशेषज्ञों का कुशल लोगों को टीम में शामिल करते हैं। यद्यपि शिक्षा के क्षेत्र में कुशल एवं विशेषज्ञ से आशय ये हो सकता है – वे लोग जो कक्षा / शाला का उद्देश्यपूर्ण अकादमिक अवलोकन कर सके, कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षकों एवं बच्चों की कठिनाइयां चिन्हित कर सके, कठिनाइयों को दूर करने के लिए शिक्षकों का मार्गदर्शन करने में सक्षम हो। इसके अलावा एक बेहतर ऐसा मार्गदर्शक हो जो स्वयं demonstrate कर सके। शिक्षा के क्षेत्र में टीम में जिन कुशलता वाले  लोगों को जोड़ा जा सकता है उनमें प्रमुख हैं-

  • कुशल अकादमिक अवलोकन / अनुवीक्षण कर्त्ता ।
  • कुशल विश्लेषक एवं समीक्षक।
  • कक्षा की गतिविधियों में शिक्षा के उद्देश्य, विषयों के उद्देश्य, पाठों से प्राप्त सीखने के प्रतिफल तथा संकेतकों को देख पाने की दृष्टि।
  • अवलोकनों, विश्लेषणों तथा समीक्षा के आधार पर प्रतिवेदन लेखक। तथा
  • आगे सुधार के लिए रननीतिकार।

विकासखंड स्तर पर टीम में शिक्षा के हितधारकों में स्वयं विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO), विकासखंड सहायक शिक्षा अधिकारी, विकासखंड स्रोत समन्वयक, कुछ चुने हुए संकुल प्राचार्य, चयनित संकुल समन्वयक तथा कुछ चुने हुए अशासकीय संगठनों के कुछ सदस्यों से टीम का गठन कर शैक्षिक नेतृत्व को अंजाम दिया जा सकता है। इसी तरह शिक्षा के सभी स्तरों पर टीम का गठन को अंजाम दिया जा सकता है।

दूसरा चरण – लक्ष्य एवं उद्देश्य निर्धारित करना

टीम गठन के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है टीम के लिए Goal-Objective तय करना। Goal तय करने के लिए हमें NEP 2020 पर आधारित NIPUN BHARAT में तय Goal एवं उद्देश्य को ही टीम का लक्ष्य स्वीकार करना ज्यादा उचित होगा और वो प्रमुख लक्ष्य होगा-

2026-27 तक 100% बच्चों का बुनियादी साक्षारता एवं संख्या ज्ञान सुनिश्चित करते हुए सीखने के प्रतिफल अर्थात कक्षा स्तर की दक्षताओं को बच्चों में लाना।

तीसरा चरण –  टीम के सदस्यों की साझी समझ के साथ क्षमतावर्धन

टीम के सदस्यों के द्वारा अपना कार्य प्रारम्भ करने से पहले लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नांकित मुद्दों पर टीम के सदस्यों का क्षमतावर्धन करना एक महत्वपूर्ण चरण होगा –

  • बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान की समझ के साथ इसे विकसित करने की रणनीति एवं क्रियान्वयन।
  • भाषा, गणित, विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान विषयों के उद्देश्यों का सीखने के प्रतिफल के माध्यम से शिक्षा के मूलभूत उद्देश्यों तक का संबंध।
  • कक्षा शिक्षण, सीखने के प्रतिफल एवं आकलन के मध्य संबंध।
  • कक्षा / शाला का अकादमिक अनुवीक्षण एवं अवलोकन के कौशल ।
  • विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न योजनाओं / प्रशिक्षण कार्यक्रमों का नई शिक्षा नीति 2020 के साथ जुड़ाव।

चौथा चरण – टीम की भूमिका तय करना

टीम के सदस्यों की भूमिकाओं को निम्नांकित बिन्दुओं में परिभाषित किया जा सकता है-

  • स्वयं की शाला / शालाओं में बेहतर कार्य कर अन्य शालाओं के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करना।
  • प्रत्येक सदस्यों द्वारा प्रतिमाह रेंडम आधार पर दो-दो शालाओं का अकादमिक अनुवीक्षण एवं अवलोकन।
  • बच्चों के सीखने को सुनिश्चित करने के लिए विभाग द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण एवं अन्य गतिविधियों को जमीनी स्तर में सुनिश्चित कराना तथा इसमें शिक्षकों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए मासिक समीक्षा बैठकों के माध्यम से मार्गदर्शन देना।
  • बच्चों के समय-समय पर होने वाले आकलन का विश्लेषण पत्रक शालाओं में तैयार कराना तथा इसके आधार पर आगे के माह में कक्षाओं में गतिविधियां सुनिश्चित कराना।
  • सभी सदस्यों के द्वारा अवलोकित शालाओं से प्राप्त आंकड़ों / परिस्थितियों का विश्लेषण कर टीम प्रमुख के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत करना ।
  • इस विश्लेषण के आधार पर आगामी तीन माह के लिए कार्य योजना (प्रस्ताव) तैयार करना।
  • टीम के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के आधार पर टीम प्रमुख द्वारा सभी शालाओं के शिक्षकों के कार्यों की समीक्षा करना (प्रति 2-3 माह में एक बार) तथा आगे 2-3 माह के लिए योजना शिक्षकों के समक्ष रखना।

पांचवा चरण – ग्रुप लीडर के द्वारा समय-समय पर समीक्षा बैठक का आयोजन

ये समीक्षा बैठक विकासखंड स्तर/जिले स्तर पर आयोजित की जा सकते हैं जो पूरी तरह अकादमिक प्रकृति की हो। इस बैठक में सभी शिक्षकों के कार्यों का पूरा सम्मान हो तथा जिन शालाओं के कार्य संतोषजनक न हो उन शालाओं को किस तरह सपोर्ट दी जा सकती है, पर मंथन हो।

निष्कर्ष

शैक्षिक नेतृत्व चुनौतियाँ संभावनाएं का सारांश यह है कि किसी भी कार्य को अंजाम देने के रास्ते में अनेकों कठिनाइयों का होना स्वाभाविक है। दुनिया में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां कठिनाइयाँ न हो। लेकिन योजनाबद्ध कार्य योजना निश्चित सफलता दिलाती है। शिक्षा के क्षेत्र में भी हमेशा से बाधाएँ रही हैं, लेकिन ये सत्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में अब तक मिली सभी सफलताएँ चाहे वह जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से प्रत्येक किलोमीटर में प्राथमिक शाला या प्रत्येक तीन किलोमीटर में माध्यमिक शाला की सुविधा उपलब्ध कराना हो, एक सफल शैक्षिक नेतृत्व का ही परिणाम है जो एक सशक्त टीम के द्वारा संभव हुआ है।

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By rstedu

This is Radhe Shyam Thawait; and working in the field of Education, Teaching and Academic Leadership for the last 35 years and currently working as a resource person in a national-level organization.

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